हरतालिका तीज मंगलवार को होगा। इसको लेकर बाजारों में रौनक बढ़ गई है। सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर निर्जला रहकर बाबा भोलेनाथ का पूजा कथा का श्रवण करेंगी। ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती ने देवाधिदेव महादेव भगवान शिव को पाने के लिए सर्वप्रथम हरतालिका व्रत किया था।

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मंगलवार को महिलाएं व्रत करेंगी। पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत निर्जला रखा जाता है। शुभ मुहूर्त सुबह 5:56 से 8:31 बजे तक रहेगा, जबकि व्रत का पारण बुधवार को सूर्योदय के बाद किया जाएगा। व्रत को लेकर गंगा घाटों पर देर शाम तक महिलाओं की भीड़ रही।
गंगा स्नान कर गंगा जल घर लाया गया। मंगलवार को व्रत का विधान होगा।पौराणिक कथा अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उसी तप से हरतालिका व्रत की शुरुआत हुई। कहते हैं कि उस समय पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था।
अटल संकल्प से शिवजी को पति रूप में प्राप्त कर सकीं। तभी से यह व्रत सुहागिन महिलाओं के साथ-साथ कुंवारी कन्याएं भी अच्छे और योग्य वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। तिलकामांझी महावीर मंदिर के आनंद पंडित बताते हैं कि इस व्रत में भगवान शिव , माता पार्वती और श्री गणेश की पूजा की जाती है।
महिलाएं पूरे दिन और रात निर्जला रहकर जागरण करती हैं और भक्ति भाव के साथ व्रत को पूर्ण करती है। हरतालिका तीज का पूजन प्रदोष काल (सायंकाल) में किया जाता है। इस दिन मिट्टी और बालू रेत से भगवान शिव, माता पार्वती और श्री गणेश की प्रतिमा बनाई जाती है। प्रतिमाओं को केले के पत्ते पर रखकर चौकी पर स्थापित किया जाता है।
भगवान शिव का पूजा कर माता पार्वती का सुहाग सामग्री से श्रृंगार किया जाता है। व्रती कथा का श्रवण करती है। पूजा के लिए गीली मिट्टी और रेत, केले के पत्ते, विभिन्न प्रकार के फल-फूल, बेलपत्र, शमी पत्र, धतूरा, आंक का फूल, मंजरी, जनेऊ, नाड़ा, वस्त्र, माता गौरी के लिए सुहाग का पूरा सामान, दीपक, कपूर, चंदन, सिंदूर, कुमकुम, कलश, पंचामृत आदि आवश्यक होते हैं। यह व्रत निर्जला और निराहार होता है। सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक अन्न-जल ग्रहण नहीं किया जाता। एक बार यह व्रत शुरू करने के बाद जीवन भर इसे नियमपूर्वक करना होता है।
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